तू कल भी कलंकित थी और आज भी

तू कल भी कलंकित थी और आज भी



कहने को तुम्हें देवी मानते हैं, तभी तक, जब तक तू त्याग और ममता की मूरत है। 
जब अपना हक मांगो, तुम्हें लांछना मिलेगी, हजारो नाम से। 
कभी पिता ने कहा, मेरी प्रतिष्ठा तुम से है। 
कभी भाई ने तो कभी पति ने कहा, मेरी प्रतिष्ठा तुम से है। 
उम्र ढ़लने को है, अब बच्चों की आवाज़ बुलंद हुई, माँ हमारी प्रतिष्ठा तुम से है। 
सबकी मर्यादा ढ़ोते ढ़ोते, ना जाने कब हमारी ईच्छा हवन कुंड में समा गई, पता नहीं। 
लेकिन आश्वस्त थी, भले ही मैंने त्याग किया, लेकिन मेरी सुरक्षा और मेरी प्रतिष्ठा तो, उसी पिता, भाई और पति ने बढ़ाया भी। 
अब बच्चे हमारी प्रतिष्ठा बनाने में सफल होंगे, ताकि हमें शर्मिंदा ना होना पड़े। 
आज के माहौल में हमारे परिवार के पुरुष किसी का शोषण नहीं कर रहे और नारी का सम्मान कर रहे हों, ये ही हमारी सफलता है। 
सभी नारियों की कोशिश रहनी चाहिए, कि अपने बच्चों की शिक्षा के साथ साथ, उन्हें नारी का सम्मान करना भी सिखाएं और समय के साथ साथ, खुद को भी आधुनिकता और उछृंगल होने से बचाएं। 
हमारी संस्कृति में नारियों का स्थान बहुत ऊंचा दिया गया है, लेकिन कलंकित भी जल्दी ही साबित कर दिया जाता है। 
माँ सीता को नहीं छोड़ा था कलंकित करने में एक नीच ने, आज भी वैसे नीच की कमी नहीं है। 
आजादी मिली है, उसका जायज लाभ लो, नाजायज नहीं। 
मजबूत बनो, मजबूर नहीं और मगरूर भी नहीं। 
भरोसा करो खुद पर, दूसरों पर नहीं। 
जिंदगी जियो, लेकिन बोझ नहीं। 
फैशन भी करो, लेकिन शरीर की नुमाइश नहीं। 
स्वाभिमानी बनो, लेकिन अहंकारी नहीं। 
किसी से डरो नहीं, लेकिन मर्यादा का त्याग भी नहीं। 
उच्चकों से दूरी बनाओ, क्योंकि ईश्वर ने वो शक्ति तुम्हें दी है, जिससे भांप सको। 
ये दुनिया तमाशबीन है, खबर सभी चाहते हैं, लेकिन मददगार नहीं। 
भार्गवी सिंह पराशर


*Source taken by -Thegramtoday.page